मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

तिना्ड़



तिना्ड़न कें कि चैं ?
के खास धर्ति नैं, 
के खास अगाश नैं,
के खास घाम नैं,
के खास हौ-
के खास पाणि नैं।
के मिलौ-नि मिलौ
उं रूनीं ज्यून।


किलै ? कसी ?


बांणि  पणि ग्येईं ज्यूंन रूणा्क।
अतर,
उना्र के स्वींण नैं-के क्वीड़ नैं
के खुशि नैं, के दुख-के पीड़ नैं
छन लै त ना्ना-ना्न
ना्ना खुशि-


ए घड़ि घाम मिलि गयौ
कुड़-कच्चारै सई
मणीं ठौर मिलि ग्येई
उं खुशि।
बस जौरौक पांणि
जोरौक घाम
जोरैकि हौकि डर भै।
अर उ निपटि ग्येई
ज्यान बचि ग्येई
उणि-पत्येड़ि-बगि
कैं पुजि जा्ओ
कतुकै मरि-खपि लै जा्ओ
उं फिरि लै खुशि


किलै ? कसी ?


डाड़ मारणौक टैमै नि भै
फिर आंसु  आल लै
पोछल को ?
उं क्वे नकां-मुकां खा्ई
म्वा्ट-तगा्ड़ बोट जै कि भा्य
जनूकैं चैं सबै तिर बांकि`ई बांकि
और तब लै रूनीं डाड़ै मारन।


हिन्दी भावानुवाद: `तिनके´


तिनकों को क्या चाहिए ?
कुछ खास धरती नहीं
कुछ खास आसमान नहीं
कुछ खास धूप नहीं
कुछ खास हवा-
कुछ खास पानी नहीं
कुछ मिले-ना मिले
वे रहते हैं जीवित। 


क्यों ? कैसे ?


आदत पड़ गई है जीने की।
वरना-
उनके कोई सपने नहीं-कोई बातें नहीं
कोई सुख-कोई दुख-कोई तकलीफ नहीं
हैं भी तो छोटे-छोटे
छोटी खुशियां-
एक बून्द पानी की मिल गई
तो वे खुश।
एक पल को भी धूप मिल गई
कूड़ा-कीचड़ ही सही
थोड़ी जगह मिल गई 
ते वे खुश।
बस, तेज पानी
तेज धूप
तेज हवा की डर हुई।
और यह गुजर गऐ तो
जान बच गई जो
उण-भटक-बह कर
कहीं पहुंच जाऐं
कुछ मर-खप भी जाएँ
वे फिर भी खुश।


क्यों ? कैसे ?


रोने का समय ही नहीं हुआ उनके पास
फिर आंसू आऐंगे भी तो पोछेगा कौन ?
वे कोई नांक-मुंह तक भर कर खाने वाले
मोटे-तगड़े पेड़ जो क्या हुऐ
जिन्हें चाहिऐ सभी कुछ अधिक-अधिक ही
और तब भी रहते हैं
हर समय
रोते ही। 

इसे यहाँ भी देख सकते हैं : 
http://apnimaati.blogspot.com/2010/06/blog-post_04.html

4 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन यह छोटा सा तिनका भी एक विशालकाय पेड को हाशिये पर धकेलने की क्षमता रखता है , सुना ही होगा..

    डूबते को तिनके का सहारा.......बहुत अच्छी प्रस्तुति.
    i think you r copy protected ?

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  2. Dhanywaad Shekhar jee..
    Han Bhakunee ji, Ek taala laga diya tha yun hee, Kya mujhe ise hataana chahiye...? Main bhee kahin copy nahin kar paata hun. Lekin kahin durupayog to nahin hoga ?

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  3. बहुत बडी़ !!!

    पर आदिम आज तिनाण के ले नि देखि सकणो
    उजाड़न लागरो
    हाए हाए रे तिनाणा तु ले खतम हे जाले आदिमेकि भूके सामणी

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