शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

पछ्यांण

मिहवा्क बोट में नाशपाति
आरुक बोट में खुमानि-कुशम्यारु
गुलाबा्क डा्व में 
नौ-नौ रंगोंक फुल्यूड़
स्यैंणियोंक आंग मैंसोंक,
अर मैंसोंक आंड.
स्यैंणियों लुकुड़/मिजात....


धरम भबरी मैंस
कि छु कैकि असलियत
कि छु कैकि पछ्यांण...
को् जा्णूं ?
उं आफ्फी न जांणन
बस, ला्गि रयीं जमाना्क टंटन में 
घ्येरी रयीं कंछ-मंछन में
पत्तै न्हें, कां हुं...
अर किलै जांणईं...।
पड़ि रै फिकर
छींक पुजण्ौकि
दुसरों कैं ध्वा्क दिंण्ौकि !
पत्तै न्है
क कैं दिंणई असल ध्वा्क।


पछ्यांण...हस्ति !
कतू सस्ति ?
लुकुड़,ज्वा्त/जुंड.-दाड़ि-बाव
बदइ,
बदइ जांण्ौ अस्ती •


बिकास ?
दुसरोंक जस करण-अदपुरै
पताव जांण-चांण अगास
असलियत ?
नि छी जब लुकुड़
कि पैद हुंण बखत
जा्स छियां नंग
आ्ब छन लुकुड़ै
दुसरोंकि हौंसि
हुंड़यां नंग।
कि यै छु हमैरि
पछयांण ?
हमर विकास ?
कि बचि रौ 
हमूं में हमर चिनाड़  ?


हिन्दी भावानुवाद

मेहल के पेड़ में
नाशपाती (कलम कर के लगाई हुई)
आड़ूं के पेड़ में खुमानी
गुलाब की टहनी में
नऐ-नौ रंगों के फूल
महिलाओं के शरीर में पुरुषों
और पुरुषों के शरीर में 
महिलाओं के कपड़े/फैशन।


धर्म भ्रष्ट लोग
क्या है किसकी असलियत
क्या है किसकी पहचान
कौन जाने ?
वह खुद भी नहीं जानते
बस लगे हैं जोड़-तोड़ में
घिरे हुऐ हैं बाल-बच्चों में
पता ही नहीं है, कहां जा रहे हैं...
क्यों जा रहे हैं।
फिक्र में हैं
जल्दी पहुचने को
दूसरों को धोखा देने को !
पता ही नहीं है
किसे दे रहे हैं वास्तव में धोखा ?


पहचान/हस्ती
कितनी सस्ती ?
कपड़े-जूते, दाढ़ी-मूंछ-बाल
बदलकर,
बदल जा रही है पूरी
विकास ?
दूसरों का अधूरा ही सही अंधानुकरण करना
पाताल जाना-और आकाश की ओर देखना
असलियत ?
नहीं थे जब कपड़े
या कि पैदा होते वक्त
जैसे थे नग्न
अब कपड़े होते हुऐ भी 
हो रहे हैं नग्न
क्या यही है हमारी
पहचान ?
हमारा विकास ?
क्या बचा है 
हम में हमारा (शिनाख्त को) चिन्ह।

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