सोमवार, 12 मार्च 2012

होलि पारि रंङोंकि कविता: पर्या रंङ


रंङिलि दुनिया्क लै रंङै-रंङ
एक रंङ लाल-हर तरफ
खुन्यौवौ्क
एक रंङ का्व-हर तरफ
कच्यारौ्क
एक रंङ पिङव-मैसोंक 
मुखोंक
कै पारि चणणौं कैकै रंङ
कै पारि कैकै
कै पारि लक्ष्मीक
कै पारि “शक्तिक
पर कमै लोगूं पारि सरस्वतीक
सब रंङ चढ़नई 
एका्क मा्थ में एक
द्वि-द्वि, तीन-तीन
हजार-हजार लै
स्यत-हरी-केसरिया लै 
पत्त नैं किलै
मिलि-मेस्यै 
सब हरै जांणईं का्व रंङ में।

सब बदवणईं आपंण रंङ
फूल लै, 
का्स-का्स रंङ
क्या्प-क्या्प रंङ
बेई तलक रूंछी जो झाड़ा्क झुपा्ड़न में 
कमेट लै नि छी उछिटणा्क लिजी
कमेट बेचि, पोतणईं पेन्ट
लुकुड़ों में छन् टा्ल, असल रंङ
मकान में, मूंख में-किरीम पौडर
इज-बा्ब में-मौम, डैडौ्क रंङ
दुदबोलि-भा्ष में लै रंङ
चांओ-दाव में लै रंङ
देश-भेष में लै रंङ-पर्या रंङ।
बदवंण में छन सब आपंण असल रंङ
न द्यखींण चैन कैं बै लै
अनार, असल लच्छंण, चिनांण।

एक लड़ैं लड़छी गांधी-मंडेलाल
ग्वारों थें-का्व रंङैकि
आपंण और पर्या रंङैकि
पर आ्ब न्है दाव में का्व
काई हैगे पुरि काया, ह्यि लै
कतुकै स्या्त है बेर 
भैम फैलै लियों उं नेता
क्वे रंङ न चड़ि सकन उना्र 
का्व मना्क थिका्वों में। 

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