अल सुबह
या शाम की
ठण्डी, हल्की
हवा
या गोद के बच्चे
या घी मक्खन की डली
या ताजे शहद
सी नहीं है,
बिल्कुल ही नहीं है।
ये है बड़ी कठिन
बाग-भालुओं की गुफा
या जोगी महात्माओं के
नग्न शरीर में राख पोत
धूनी रमाने के
डेरों, कुटियाओं
मैं रहने जैसी,
ऊंची हिमालयी चोटियों
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाली पहाड़ियों
जैसी ऊंची-नींची,
बर्फ सी ठण्डी
और बर्फ जैसी ही गर्म!
बहु-बेटियों के सामर्थ्य से भारी व असहज
घास-लकड़ी के बोझों से भारी
चीड़ की छाल सी फटी
भालू से नोंची गई सी
अभिमन्त्रित तलवार से पीटी हुई
ज्यों घाव पर भनभनाती मक्खियाँ.
और, ऐसा ही मेरा प्यार!
खाली घूमने को नहीं
ऊपर-ऊपर से ही देख कर उड़ने को नहीं
अपना भोजन साथ लाकर
यहां खाने-पीने
सैर तफरीह कर
मुझे भोगने-दूषित करने की
किसी को इजाजत नहीं
अच्छा मानो या बुरा
आना हो तो आइयेगा
आप हमारे परमेश्वर ठहरे
सौ बार आइयेगा।
पर रखिऐगा ध्यान
यहां आकर, यहीं का खाना
यहीं का पीना
यहीं का पहनना,
यहीं का बिछौना प्रयोग करना होगा
मुझे महसूस कर भोगना होगा
मेरा बनना पड़ेगा।
जो है मंजूर
तो आइये , सौ बार आइये
आप हमारे परमेश्वर ठहरे।
मूल कुमाऊंनी कविता: घुम्तून हुं
म्येरि ज्यूनि
रात्ति व्यांणिकि
या ब्यावैकि
ठण्डि, हउवा-हऊ
हौ
या चुचिक भौ
या घ्यू नौंणिक डौ
या सन्यूत मौ
जसि न्हैं
बिल्कुल न्हैं।
यौ छु बड़ि कट्ठर
बाग-भालुना्क दु-उड्यार
या जोगि-मातना्क
नंग आंग में छा्र फो्कि
धुंणि रमूंणा्क
जोगा्क ड्या्र-डफा्र
में रूंण जसि,
उच्च हिमावा्क डा्नों
भ्योव, कप्फर, पैर-पैराड़
जसि उच्च-निच्च,
ह्यूं जसि´ई अरड़ि
ह्यूं जसि´ई ता्ति
बौड़ि-च्येलिना्क असक-असजिल
घा-लाकड़ोंक गढावों चारी भा्रि
शालुक बगेटों जसि फा्टी
चिरा्ड़ पड़ी खुटों
भालुक जसि बुकाई
मुनी बण्याठै्ल जसि कचकचाई
मांखोंल भनभनाई जस घौ।
हौर, यस्सै म्यर लाड़!
खा्लि घुमंड़ हुं नैं
मांथी-मांथी´ई चै उड़ंण हुं नैं
आपंण सामव दगड़ै ल्यै
यां खांण-पिंण हुं
सैर-तफरीह करि
इकें बिग्यूंण हुं
कै-कैं इजाजत न्हैं।
भल् मा्नो नक्
आला... अया
तुमि हमा्र परमेश्वर भया
सौ फ्या्र अया।
पर धरिया धियान
यां ऐ, यां कै खा्ण
यां कै पिंण
यां कै लगूंण
यां कै बिछूंण पड़ल
मिकैं भोगंण पड़ल
म्यरै बड़ंण पड़ल।
जो छु मंजूर
त आओ, सौ फ्यार आओ,
तुमि हमा्र परमेश्वर भया।
अच्छा अनुवाद!!
जवाब देंहटाएंnashihat achchi bhi hai or jaruri bhi..
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंमिकैं भोगण पडौ़ल
सुन्दर भाव ।
rachna par badhai
जवाब देंहटाएंsundar lines...naveen ji..shukriya !
जवाब देंहटाएंNaveen ji, nature par aadharit kavita bhal likchaan, door rah kar be apun waak yaad oooni re..
जवाब देंहटाएंbhal lagau sunder kavita chhan.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सबूं कें .
जवाब देंहटाएंBahut achhi kavita hai...
जवाब देंहटाएंThank You all.
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