Himalaya glittering like Gold early in the morning.(January 2010 - Geotagged Photo Contest Honorable mentions)
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यहाँ है मेरी कुमाउनी कविताओं का भावानुवाद, कविता मेरे लिए हैं मन के भीतर की उथल पुथल, जो बाहर आने के लिए मुझे व्याकुल कर देती हैं. सयास निकलती हैं, कोई प्रयास नहीं करना पड़ता.. कोई तुकबंदी भी नहीं. वैसे यह मेरी भी नहीं हैं, यह मेरे पूरे परिवेश की हैं, क्योंकि यह वहीँ से विचारों के साथ मेरे भीतर गयी हैं. मैंने इन्हें रचा भी नहीं, मैं कुछ रच भी नहीं सकता. मैं ब्रह्मा तो नहीं हूँ ना...