यहाँ है मेरी कुमाउनी कविताओं का भावानुवाद, कविता मेरे लिए हैं मन के भीतर की उथल पुथल, जो बाहर आने के लिए मुझे व्याकुल कर देती हैं. सयास निकलती हैं, कोई प्रयास नहीं करना पड़ता.. कोई तुकबंदी भी नहीं. वैसे यह मेरी भी नहीं हैं, यह मेरे पूरे परिवेश की हैं, क्योंकि यह वहीँ से विचारों के साथ मेरे भीतर गयी हैं. मैंने इन्हें रचा भी नहीं, मैं कुछ रच भी नहीं सकता. मैं ब्रह्मा तो नहीं हूँ ना...
रविवार, 10 जनवरी 2010
हमारे गाँव में
हमारे गाँव में, अब पहले सी बात ही नहीं,
कि जैसे पेड़ का, जड़ों से कोई वास्ता ही नहीं.
चमन में उड़ने का शौक तो सबको ही है,
पर अपने परों को कोई तोलता ही नहीं.
कहाँ से आयेगी नई हवा, और कैसे आयेगी,
अपने घरों के झरोखे कोई खोलता ही नहीं.
वही एक मेरे दिल में बैठा हुआ है,
वह जिससे मैं कभी ठीक से मिला ही नहीं.
कैसे कहूँ मां, मैं सजाऊंगा तुम्हें,
मेरी आशाओं का बुरांश कभी खिला ही नहीं.
आ गया हूँ जीवन के उस आख़िरी पड़ाव पर
जहाँ सीढियां तो हैं मगर पैर ही नहीं.
'आकाश छुवैंगे' 'आकाश छुवैंगे' तो सभी कह रहे
पर लहू मैं किसी के वैसी गर्मी ही नहीं.
जो नदी बहा रही है, वही क्या पार लगाएगी हमें,
थोडा सा भी कोई डूबते का तिनका ही नहीं.
होगा उजाला और एक दिन जरूर ही होगा,
मैं जानता हूँ, ऐसी कभी न खत्म होने वाली, कोई रात ही नहीं.
.....नवीन जोशी
(मेरी कुमाउनी कविता 'हमर गौं में ' का भावानुवाद)
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कहाँ से आयेगी नई हवा, और कैसे आयेगी,
जवाब देंहटाएंअपने घरों के झरोखे कोई खोलता ही नहीं.
सत्य वचन
और कोई खोलना चाहे तो उसे कोई तोलता भी तो नहीं ।
नवीन जी बहुत खूब ! शुक्रिया खुबसूरत कविता देने के लिए , खासकर कुमाओनी में लिखी गई.....उम्मीद करता होऊं आगे भी अच्छी कविता पढने को मिलेगी...आम लोगों से जुड़े हुए विषय पर !
जवाब देंहटाएंप्यार के साथ ,
मनोज एस. रौतेला
टी वी पत्रकार
मनोज जी, धन्यवाद आपकी सुन्दर प्रतिक्रियाओं के लिए, मैं ब्यूरो प्रभारी हूँ नैनीताल में राष्ट्रीय सहारा में, आप पहाड़ में कहाँ से हैं, और कौन से T.V. में हैं ?
जवाब देंहटाएंजोशी ज्यू,
जवाब देंहटाएंआपुंक ब्लोग कुमाऊनी में देख बेर बड़ी प्रसन्नता है, हमर लै प्रयास छू पहाड़ी भाषा कैं इन्टर्नट पर स्थान मिलौ। कभैं टैम लागूं तो पहाड़ी फ़ोरम साईट http://www.pahariforum.net पर विजिट करणै की कृपा करा। पहाड़ी फ़ोरम कैं आपुंक आशीर्वाद प्राप्त होल, यसी आशा करनूं।