शनिवार, 19 दिसंबर 2020

तु पलटिये जरूड़




च्ये्ली!

छ्योड़ी!!

कूंणईं-

बखत बदईणौ

तु धरिये आपंण धियान

भली भैं सराये खुट

झन भुलिये

तु छै छ्योड़ी ऽ

जुगन में ख्येड़ियै ऽ,

कतुकै, कस्सै

बदइ जौ बखत

तु रौली छ्योड़ी ऽ

छोड़ियै ऽ, ख्येड़ियै ऽ....


मेंई झुगुल पैरि

आज मैक्सी

भो ‘मिनी-मिडी’

तु जि लै पैरि

ला्गली बा्ट-

घर में,

घर में’ ई

ला्गि जा्ल गुण्ड

त्यार पछिल

बजाल सिट्टि

मारा्ल आंख

च्वेड़ा्ल ल्वा्त

लुछा्ल तुकैं

गा्व न अटकली

हुत्तै लै न्यैयि ल्या्ल

हौर....

जांणि कि-कि लै.....!


त्येरि दा्स दयेखि

उवाक्क-उपर ऐजनीं जनूंकै

अर जो सम्मेलनन में

लम्ब चौड़

भाषण दिन-दिन न था्कन

त्यार बिकासा्क उपर

उं लै, मौक ऊंण पारि

खाप तां्णा्ल

गिज उफराल

ज्यूंनि भर झुराल तुकैं।


य ह्वल,

बस त्यार पलटंण तलक

सार न है सको भलै आङ

तु करि ले मन सार,

और दे जवाब पलटि मेंर

मकैं पुर बिश्वास छु

तब, त्वे में देखियै्लि

उनूंकै झा्ंसिकि रांणि 

का्इ माता!

आ्ंख निमी जा्ल

खाप तांणियै रै जा्ल

गिज सुकि जा्ल उनार

पर,

त्यार खुटी सिलाम,

तु पलटिये जरूड़।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

कोरोना कें हरूंण छू



 ऐरौ दुनीं में कोरोना, भुती रौ दुनी में कोरोना

जागर लगाओ यै कैं भजूंण हुं

भजूंण पड़ल इकैं 

पर इकैं भजूंणक तरिक उस न है सकन

जसी द्याप्तन कैं जगूंनीं

उसी-जसी भूतन, छौवन कें भजूंनीं

किलकि यो छू रक्तबीज

जां-जां भिं में झड़नीं यैक रक्तबीज

ठा्ण है जांनी यै है लै सकर, 

बांकि, 

जांणि कतुकप रक्तबीज

यैक इलाज बस एकै छू

यै कैं भजूंणौक उपाय बस वी छू

जो बताई जै रौ दुर्गा सप्तशती में

जो पढ़ी जैं नौर्तन में

जसी मारौ माता दुर्गाल रक्तबीज कें

जसी न झड़ण दि रक्तबीजक ल्वे भिं में 

उसीकैं यैक रक्तबीज लै

न झड़ण दिंण पड़ाल आपंण पहाड़,

आपंण देवभूमि में।

यो छु मानवताक भष्मासुर

यकें आपूं कें ठौक लगूंण झन दिया

यैक ढीक झन जाया

जो लागि गेई काईं यैक संक्रमित में ठौक

जो न्है गयां कांई यैक ढीक

कर द्यल य भसम 

हमूंकैं ई नैं,

पुरि मानवता कैं।

पैली कांई घर है भ्यार जाया झन,

इथ-उथ हाथ टेकिया झन

खास बिरादरी, मितरामी में लै 

रया दूर-दूरै 

जरूरी इथ-उथ जांण पड़ौ

मूंख में लगाया मास्क, हातन में दस्तान,


फिर लै जो कांई टेकी गयो हात

हात ध्वे ल्हिया

खासकर आंख, नाक, कान में खाजि-खजै लगूंण

खांण खांण है पैली 

हाथ जरूरै ध्वे ल्हियां सापणैल

20 सेकेंड तलक साफ करिबेर

करते रया तीन है पांच मिनट लूंण-पाणिक गरार

पीते रया गरम पांणि, चहा

कि दूध में हल्द खिति बेर

बुड़-बुड़्यांक धरिया खास ध्यान 

न निकलंण दिया उनूंकैं घर है भ्यार

फिर लै जो ऐ जाओ तेज जर, 

सुकि खांसि, 

सांस ल्हिंण में असज

सिद्द फोन में 104 नंबर मिलाया, 

अस्पताल जाया

भ्यार बै आईनैकि जानकारी लै यै नंबर पारि दिया

और के करंणक जरवत न्हैं

याद धरो

हम वीरभूमिक वीर च्याल-च्येली छां

लाम में दुश्मणोंक दांत खट्ट करिणियोंक भै-बैंणी छां

आज छु मौक

घर में भैटि बेर

देश सेवा करणौक

तो संकल्प ल्हियो

करुंल हम करोनाक लै जड़मेट

घर बै भ्यार न निकलूंल

कै कैं ठौक नि लगूंल

घर में रूंल 

और कोरोना कैं हरूंल।




हिंदी अनुवाद: कोरोना को हराना है

आया है दुनिया में कोरोना, भूतों की तरह डरा रहा है1

जागर2 लगाओ इसे भगाने को

भगाना पड़ेगा इसे भगाने को

पर इसे भगाने का तरीका वैसा नहीं हो सकता

जैसे देवताओं को जागृत किया जाता है

बल्कि वैसे, जैसे भूतों-प्रेतात्माओं को भगाया जाता है 

क्योंकि यह है रक्तबीज3

जहां-जहां गिरते हैं इसके रक्तबीज यानी रक्तकण

खड़े हो जाते हैं उस से भी बड़े

अधिक,

जाने कितने ही रक्तबीज

इसका इलाज/समाधान बस एक ही है

इसे भगाने का उपाय बस वह ही है

जो बताया गया है दुर्गा सप्तशती में

जो पढ़ी जाती है नवरात्रों में

जैसा मारा माता दुर्गा ने रक्तबीज को

जैसे गिरने नहीं दिये रक्तबीज के रक्तकण जमीन में

वैसे ही इसके रक्त कण भी

नहीं गिरने/पड़ने देने पड़ेंगे अपने पहाड़

अपनी देवभूमि में।

यह है मानवता का भष्मासुर4

इसे खुद को छूने न देना

इसके करीब न जाना

कहीं छू जाए इसका संक्रमित तो

जो कहीं चले गए इसके करीब तो

कर देगा यह भष्म

हमें ही नहीं,

पूरी मानवता को।

पहले तो कहीं घर से बाहर ही न जाना,

यहां-वहां हाथों को न टेकना

खास रिश्तेदारी-मित्रों में भी

रहना दूर-दूर ही

जरूरी कार्य से यहां-वहां जाना ही पड़े तो

मुंह में लगाना मास्क, हाथों में दस्ताने,

फिर भी जो कहीं हाथ टिक जाए जो

हाथ धो लेना

खासकर आंख, नाक, कान में खुजली लगाने

खाना खाने से पहले

हाथ जरूर ही धो लेना साबुन से

20 सेकेंड तक साफ से

करते रहना तीन से पांच मिनट तक नमक-पानी के गरारे

पीते रहना गर्म पानी, चाय

या दूध में हल्दी डालकर

बड़े-बूढ़ों का रखना खास ध्यान

न निकलने देना उन्हें घर से बाहर

फिर भी जो आ जाए तेज ज्वर,

सूखी खांसी,

श्वांस लेने के दिक्कत

सीधे फोन में 104 नंबर मिलाना,

अस्पताल जाना,

बाहर से आये लोगों की जानकारी भी इस नंबर पर देना

और कुछ करने की जरूरत नहीं है

याद रखो

हम वीरभूमि के वीर बेटे-बेटियां हैं

सीमा पर दुश्मनों के दांत खट्टे करने वालों के भाई-बहन हैं

आज है मौका

घर में बैठ कर

देश सेवा करने का

तो संकल्प लें

मिटाएंगे हम कोरोना का नाम

करेंगे हम कोरोना का जड़ से खात्मा

घर से बाहर नहीं निकलेंगे

किसी को छुवेंगे नहीं

घर में रहेंगे

और कोरोना को हराएंगे।


 कुछ खास शब्दों के अर्थ:

1. ‘भुती रौ’ शब्द किसी प्रेतात्मा के लिए प्रयोग किया जाता है जो डराती रहती है। 

2. ‘जागर’ एक तरह का रात्रि में किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान होता है, जिसमें ‘जागरण’ कर देवताओं एवं भूतों, प्रेतात्माओं/हुतात्माओं, बुरी आत्माओं का अवतरण किया जाता है, ताकि भूत का प्रकोप/भय समाप्त हो।

3. ‘रक्तबीज’ भारतीय मिथकों, दुर्गा सप्तशती के अनुसार एक ऐसा राक्षस जिसके जितने रक्त कण जमीन में गिरते थे, उतने ही उसके ही जैसे राक्षस पैदा होकर माता से लड़ने लगते थे। 

4. ‘भष्मासुर’ भारतीय मिथकों के अनुसार एक ऐसा राक्षस जिसने भगवान शिव से ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था, कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखता-वह भष्म हो जाता था। आखिर में वह स्वयं भगवान शिव के सिर पर ही हाथ रखकर उन्हें भष्म करने निकल गया था। इस पर भगवान विष्णु ने चतुराई से उसका हाथ उसके ही सिर पर रखवाकर उसे भष्म करवाया था।


बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

कुछ काम अब तो कर लो बलम...



‘कुछ काम अब तो कर लो बलम,

बंद करा क्यूं ग्यूं चावल हमरा, गुझिया हुंणी चीनी दिला दो बलम,

खाली खजाना जेब भी खाली-करने वाले जेल चलें,

मुख पे मलो उनके कालो डीजल, भ्रष्टाचार की होरी जलें,

औरों पर तो बहुत चलाई, कुछ खुद पर भी तो चला दो कलम,

कुछ काम अब तो कर लो बलम’

नवीन जोशी, 'नवेंदु'

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रविवार, 13 जुलाई 2014

कुमाउनी का पहला फार्मेट में भी उपलब्ध कविता संग्रह-"उघड़ी आंखोंक स्वींण"

जैल थै, वील पै

Click the Link : जैल थै, वील पै

एक कुमाउनी नाटक- खास मेरे सहपाठी दोस्तो की लिये (Characters and Plot has been Changed)
http://navinjoshi.in/?attachment_id=2602

गुरुवार, 22 मई 2014

पहली कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी लोक भाषाओं की मासिक पत्रिका ‘कुमगढ़’ प्रकाशित

उत्तराखंड की पहली कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी सहित समस्त लोक भाषाओं की मासिक पत्रिका ‘कुमगढ़’ का पहला अंक प्रकाशित हो गया है।

पत्रिका की प्रति सुरक्षित करवाने, नियमित या आजीवन सदस्यता लेने एवं आगामी अंकों के लिए अपने मौलिक लेख, कविताएं आदि प्रेषित करने के लिए पताः
श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु’
संपादक-कुमगढ़ पत्रिका
हिमानी वाङमय पीठ, पश्चिमी खेड़ा, पोस्ट-काठगोदाम, जिला-नैनीताल, पिन-263126। मोबाइलः 9719247882। ईमेलः kumgarh@gmail.com ।

सदस्यता राशिः सदस्यता (संरक्षक): रुपए 5000
आजीवन सदस्यताः रुपए 1000
विशेष सहयोगः रुपए 500
वार्षिक सहयोगः रुपए 100
एक प्रतिः रुपए 20

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

कुमाउनीं के पहले पुस्तक के साथ P.D.F. फॉर्म में भी प्रकाशित कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ का विमोचन

मेरी कुमाउनी कविताओं का संग्रह: उघड़ी आंखोंक स्वींड़ (लिंक क्लिक कर के PDF फॉर्मेट में पढ़ सकते हैं। )

आपकी अनेकों Querries के उत्तर में बताना है कि पुस्तक की सहयोग राशि रूपए 250 है। इसे P.D.F. फोर्मेट में रूपए 150 में (S.B.I. नैनीताल के खाता संख्या 30972689284 में जमाकर) ई-मेल से भी मंगाया जा सकता है।

सुविधा के लिए पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है।

मेरी  चुनिन्दा कुमाउनी कवितायें मेरे ब्लॉग 'ऊंचे पहाड़ों से.… जीवन के स्वर' में भी देख सकते हैं।

बधाइयों, शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के लिए सभी मित्रों / अग्रजों का धन्यवाद, आभार,
संपर्क करें:
saharanavinjoshi@gmail.com
Mobile: 9412037779, 9675155117.