यहाँ है मेरी कुमाउनी कविताओं का भावानुवाद, कविता मेरे लिए हैं मन के भीतर की उथल पुथल, जो बाहर आने के लिए मुझे व्याकुल कर देती हैं. सयास निकलती हैं, कोई प्रयास नहीं करना पड़ता.. कोई तुकबंदी भी नहीं. वैसे यह मेरी भी नहीं हैं, यह मेरे पूरे परिवेश की हैं, क्योंकि यह वहीँ से विचारों के साथ मेरे भीतर गयी हैं. मैंने इन्हें रचा भी नहीं, मैं कुछ रच भी नहीं सकता. मैं ब्रह्मा तो नहीं हूँ ना...
रविवार, 10 जनवरी 2010
मुझे भरोसा है
अँधेरा है अभी, मैं मान भी लूँ तुम्हारी बात
पर फिर होगा उजाला, मुझे भरोसा है.
खाली 'देखा-देखंगे' कहने वाले, दिखायेंगे कुछ कर के
बकवास छोड़ होंगे कार्य को उद्यत, मुझे भरोसा है.
काले कारनामे-सफ़ेद वस्त्र, स्वांग रच जो बने हैं प्रधान
होगा उनका मुंह काला, मुझे भरोसा है.
दूसरों के घर जलाने वाले, समझेंगे सबको अपना
संभालेंगे देश को, मुझे भरोसा है.
आंखें बंद कर भागने वाले, भागेंगे नहीं अंधी दौड़ में
देखेंगे ऊपर-नीचे हर तरफ, मुझे भरोसा है.
जन्मान्धों की भी खुलती हैं आखें, कभी तो टूटती है नींद
बदले जाते हैं चोले, आते हैं मेले, मुझे भरोसा है.
दिन में ही घिर सकता है अँधेरा, हो सकती है रात भी
हाथों में थामी जायेंगी मशालें, मुझे भरोसा है.
लगा है कोहरा झूठ का, सच की आँखों में पट्टा
बरसेंगे शीघ्र बादल, मुझे भरोसा है.
कहाँ जायेगी हंसी, और क्यों, सामने ही आ मिलेगी
जाना नहीं पड़ेगा तलाशने, मुझे भरोसा है.
....नवीन जोशी
(मेरी कुमाउनी कविता 'भरौष' का भावानुवाद )
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नवीन जी
जवाब देंहटाएंफॉण्ट साईज बढ़ाकर....फॉण्ट का रंग बदलें तो पढ़ने में सहूलियत हो.
आपका भरोसा बना रहे ताकि कुछ भरोसा हमें भी हो जाये ।
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