शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

भ्रम






दशहरे के दिन, 
बना, सजा रखे हैं सभी ने
अपने अपने रावण,
..और अब आग लगा रहे हैं...


किसी का रावण कपड़ों का,
किसी का कागजों का..
किसी में ढांचा लकड़ियों का
और किसी में लोहे का भी


कोई रावण भस्म हो जा रहा पल भर में
कोई कठोर
आँख दिखा रहा
राजी नहीं हो रहा जलने को


कुछ भी हो, वह भी  जल्द हो जायेगा राख,

उसके भीतर रखे बम- पटाखे
कुछ देर भड़भड़ाएंगे और फिर चुप हो जायेंगे.


पर होगी इस बीच एक ख़ास चीज 
जब जल रहा होगा रावण, 
उससे उठने वाली चिंगारियों से 
बन जायेंगे रक्तबीज.


भ्रम होगा, जल गया है रावण
पर वो रक्तबीज, बाहर आ
दुनियां में पाले-दुलारे जायेंगे, 


फिर अगले साल के दशहरे में
और भी बड़े, ऊँचे 
रावण सजेंगे 


नहीं मरेगा यों रावण, न कुम्भकरण, 
न खर-दूषण
खाली बढेगा प्रदूषण..
जला कर या उससे डर भाग कर ..


उसके सामने होना पड़ेगा खड़ा
करना पड़ेगा मुकाबला
लडनी पड़ेगी लड़ाई
घर से, भीतर से, खुद से भी,


मेरी मानो 
न बनाओ, न जलाओ मरे रावण को
जब बड़े-बड़े रावण हैं जिन्दा दुनियां में
कर सको, तो रखो उन्हें चौराहों पर
रोज जूते मारो, काला करो मुंह
और हिम्मत है तो
उन्हें जलाओ.


खाली
भ्रम को जला कर क्या फायदा.....












.....नवीन जोशी 
 (मेरी कुमाउनी कविता 'भैम' का भावानुवाद)

6 टिप्‍पणियां:

  1. joshi ji good morning/ sach kaha hai kisi ne ki yadi aapka virodh bad raha hai to samjho ki aap tarrqui kr rahe hain, yahi baat rawan pr bhi lagu hoti hyai.rawanke putlon se jahir hota hai ki rawan tarraqui kr raha hai...bahut khoob.....

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  2. अब तो रावण ही रावण बना के जलाने लगे हैं
    राम को भी अब ये देखने की फुर्सत कहाँ?

    बहुत खूब !!

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  3. Bahut sundar chitramaye prastuti ki liye dhanyavaad. Bahut achha likhte hai aap...
    Mahashivratrik ki hardik shubhkamnayne.

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  4. बेहतरीन रचना है,आपको बहुत बहुत बधाई. कुमाउनि अनुवाद भी बहुत अच्च्छा है.

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  5. waah....jara se sabdon mein aapne kaafi kuch keh diya...bahut khoob..

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