स्कूल जाने वाले
विद्यार्थी नहीं,
शिक्षक नहीं,
क्या ट्यूटर ?
अस्पताल जाने वाले
चिकित्सक नहीं,
शल्यक नहीं,
क्या चीड़-फाड़ करने वाले
कसाई ?
घर-सड़क बनाने वाले
इंजीनियर नहीं,
ठेकेदार नहीं,
सीमेंट-सरिया चुराने वाले
चोर- लुटेरे ?
राजनीति करने वाले
जनता के सेवक नहीं,
विकास लाने वाले नेता नहीं,
देश बेचने वाले
दलाल ?
कोर्ट- कचहरी जाने वाले
वकील नहीं,
जज नहीं,
अन्याय करने वालों को बचाने वाले
सीधे साधे लोगों को लूटने- मारने वाले...
गुंडे ?
समाज में रहने वाले
किसी के पड़ोसी नहीं,
किसी के ईष्ट-मित्र नहीं,
सिर्फ पैसों के
गोबरी कीड़े ?
लक्ष्मी के पुजारी नहीं,
सवारी...उल्लू ?
.... नवीन जोशी
(मेरी कुमाउनी कविता 'को छां हम' का भावानुवाद. )