रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कां है रै दौड़



कां है रै दौड़
भलि छै कुशल बात, ना्न-तिन
अयांण-सयांण, धिनाई-पांणि
घर-दौंड़, भितर-भ्यार
बंण-जङव, हा्व-पांणि
ढोर-डंगर, फसल-पा्ति
बुति-धांणि......
आ्ब कि पुछछा
ककैं छु पत्त
बस है रै दौड़
कां हुं ? न्है पत्त ।

सब भा्जणईं-पड़ि रै भजा-भाज
निकइ रौ गाज
करंण में छन सिंटो्इ सिंगार
अगी रौ भितर-भ्यार।

क्वे आपूं ज कै कैं न चितूंणया
क्वे मैंस कैं क्वे मैंस न मिलणंय
क्वे ज्यून कैं क्वे ज्यून न मिलणंय
क्वे सच्च कैं क्वे सच्च न मिलणंय
क्वे हिंदुस्तानि कैं क्वे हिंदुस्तानि न मिलणंय
क्वे पहाड़ि कैं क्वे पहाड़ि न मिलणंय....

फिर उं सयांण कूंणी आपूं कैं (?)
छा्र फो्कि
ढुनणईं मुक्ति-शांति....
जां न ज्यूनि छु
न मैंस...न सच्चाइ...न मौतै ऽ
जां जि छु, कि न्है
को् कै सकूं पुर भरोषैल
कि मिलौ्ल वां
छा्र, सिफर अलावा और के ?

पर छा्र सिफर है लै ठुलि
न ह्वैलि‘ई क्वे दौड़
संतोष है महासंतोष
शांति है निःश्वास शांति
मुक्ति है महामुक्ति ?

शनिवार, 24 नवंबर 2012

आम आदिम-आम आदमी


मिं ए आम आदिम
यै है बांकि 
के नैं।
मिं के लै नैं।

म्या्र स्वींड़ के नैं
म्या्र क्वीड़ के नैं
म्येरि पीड़ के नैं
पर म्येरि घींण करनी सब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्या्र गीत के नैं
म्यार रीत के नैं
म्येरि प्रीति के नैं
म्येरि जीत न हुनि कब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्येरि डाड़ के नैं
म्यर लाड़ के नैं
म्या्र हाड़ के नैं
मिं हूं खाड़ खंड़नी सब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्येरि अकल के नैं
म्येरि शकल के नैं
म्यर बल के नैं
म्यर जस पगल नि मिलल कब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्यर नौं है सकूं के लै
म्यर गौं है सकूं क्वे लै
सकींण लागि गे मेरि लौ लै
बंणि गे ए ’घौ’ म्येरि ज्यूनि हुत्तै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

क्वे कै दियो वी ’हाथ’ म्या्र दिगाड़ि
क्वे थमै दियो म्या्र हात में ’फूल’
क्वे बंणै दियो म्येरि नौं कि’ई पार्टी
उनूं छोड़ि, होली म्येरि भलिआम कब्बै ?
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

हिंदी भावानुवाद

मैं एक आम आदमी
इससे अधिक 
कुछ नहीं
मैं कुछ भी नहीं।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरे सपने कुछ नहीं
मेरी बातें कुछ नहीं
मेरे दर्द कुछ नहीं
लेकिन मुझसे घृणा करते हैं सभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरे गीत कुछ नहीं
मेरे तौर-तरीके कुछ नहीं
मेरा प्यार कुछ नहीं
मेरी जीत नहीं होती कभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरा रोना कुछ नहीं
मेरा दुलार कुछ नहीं
मेरी हड्डियां (हो चुकीं तो) कुछ नहीं
मेरे लिये गड्ढे ही खोदते हैं सभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरी अक्ल कुछ नहीं
मेरी शक्ल कुछ नहीं
मुझमें बल कुछ नहीं
मुझ सा पागल नहीं मिलेगा कहीं।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरा नाम हो सकता है कुछ भी
मेरा गांव हो सकता है कहीं भी
खत्म होने लगी है मेरी आत्मिक शक्ति भी
एक घाव बन गई है मेरी पूरी जिंदगी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

कोई कह दे उसका ’हाथ’ मेरे साथ
कोई पकड़ा दे मेरे हाथ में ’फूल’
कोई बना दे मेरे नाम से ही पार्टी
उनके बजाय क्या हो सकता है मेरा भला कभी ?
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

सोमवार, 12 मार्च 2012

होलि पारि रंङोंकि कविता: पर्या रंङ


रंङिलि दुनिया्क लै रंङै-रंङ
एक रंङ लाल-हर तरफ
खुन्यौवौ्क
एक रंङ का्व-हर तरफ
कच्यारौ्क
एक रंङ पिङव-मैसोंक 
मुखोंक
कै पारि चणणौं कैकै रंङ
कै पारि कैकै
कै पारि लक्ष्मीक
कै पारि “शक्तिक
पर कमै लोगूं पारि सरस्वतीक
सब रंङ चढ़नई 
एका्क मा्थ में एक
द्वि-द्वि, तीन-तीन
हजार-हजार लै
स्यत-हरी-केसरिया लै 
पत्त नैं किलै
मिलि-मेस्यै 
सब हरै जांणईं का्व रंङ में।

सब बदवणईं आपंण रंङ
फूल लै, 
का्स-का्स रंङ
क्या्प-क्या्प रंङ
बेई तलक रूंछी जो झाड़ा्क झुपा्ड़न में 
कमेट लै नि छी उछिटणा्क लिजी
कमेट बेचि, पोतणईं पेन्ट
लुकुड़ों में छन् टा्ल, असल रंङ
मकान में, मूंख में-किरीम पौडर
इज-बा्ब में-मौम, डैडौ्क रंङ
दुदबोलि-भा्ष में लै रंङ
चांओ-दाव में लै रंङ
देश-भेष में लै रंङ-पर्या रंङ।
बदवंण में छन सब आपंण असल रंङ
न द्यखींण चैन कैं बै लै
अनार, असल लच्छंण, चिनांण।

एक लड़ैं लड़छी गांधी-मंडेलाल
ग्वारों थें-का्व रंङैकि
आपंण और पर्या रंङैकि
पर आ्ब न्है दाव में का्व
काई हैगे पुरि काया, ह्यि लै
कतुकै स्या्त है बेर 
भैम फैलै लियों उं नेता
क्वे रंङ न चड़ि सकन उना्र 
का्व मना्क थिका्वों में।