मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

उत्तराखंड निकाय चुनावों पारि कुमाउनी कविता: फरक पडूं



सागा्क फड़ पारि
वीलि आपंण पुर अनुभव
गणित, भूगोल, हिसाब-किताब
सामान्य ज्ञान
हुत्तै अड़ोइ हा्लौ
पुर डिमाग खर्चि हा्लौ
पांच रुपै है चार-आठ आ्न
कम-बांकि खर्चणा लिजी
एक किलू आ्लूक ग्याड़ों लिजी
जो इक्कै दिन में लै निमड़ि सकनीं
पर, वीकि स्यैंणि उनूकें
पुर पांच दिनोंक तै पुरयालि
पांच फड़ टटो्इ हा्लीं...

सोचि हा्लौ-
कि, कसी, कतू....
उमाइ, थे्चि
खुस्याल छ्वेलि
कि सिखुस्यालै का्टि
कि-कि मस्या्ल खिति
के् दिगाड़ मिस्यै
कि सुद्दै गुटुक
कि............
पचास परगारा्क
आ्लू सागा्क सवाद
सागा्क फड़ पारि
ठड़ी-ठड़ियै
चा्खि हा्लीं
पर के फैसा्ल न करि सकनय।

भो छन भोट,
आज-भो रोजै भोट
बजार बन्द रौलि
आ्ल लै न बिचाल
फिर लै बिन आ्लू कै -रित्तै
ऐगो घर हुं उ
हा्य, इतू अकर सोचनै
आलु है सकर आलुक सोरों कैं बोकि।

घर सागैकि खुरि-तुरि करि भैटी
स्यैंणि नड़क्यूनै-
एक किलू आ्ल लूंण में
इतू विचार?
भो कसी द्यला भोट?
ककैं द्यला? कसी करला फैसा्ल?
कूणौ-
वीकि कि चिंत?
कै कैं लै दि द्यूंल
कि फरक पडूं ।

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कां है रै दौड़



कां है रै दौड़
भलि छै कुशल बात, ना्न-तिन
अयांण-सयांण, धिनाई-पांणि
घर-दौंड़, भितर-भ्यार
बंण-जङव, हा्व-पांणि
ढोर-डंगर, फसल-पा्ति
बुति-धांणि......
आ्ब कि पुछछा
ककैं छु पत्त
बस है रै दौड़
कां हुं ? न्है पत्त ।

सब भा्जणईं-पड़ि रै भजा-भाज
निकइ रौ गाज
करंण में छन सिंटो्इ सिंगार
अगी रौ भितर-भ्यार।

क्वे आपूं ज कै कैं न चितूंणया
क्वे मैंस कैं क्वे मैंस न मिलणंय
क्वे ज्यून कैं क्वे ज्यून न मिलणंय
क्वे सच्च कैं क्वे सच्च न मिलणंय
क्वे हिंदुस्तानि कैं क्वे हिंदुस्तानि न मिलणंय
क्वे पहाड़ि कैं क्वे पहाड़ि न मिलणंय....

फिर उं सयांण कूंणी आपूं कैं (?)
छा्र फो्कि
ढुनणईं मुक्ति-शांति....
जां न ज्यूनि छु
न मैंस...न सच्चाइ...न मौतै ऽ
जां जि छु, कि न्है
को् कै सकूं पुर भरोषैल
कि मिलौ्ल वां
छा्र, सिफर अलावा और के ?

पर छा्र सिफर है लै ठुलि
न ह्वैलि‘ई क्वे दौड़
संतोष है महासंतोष
शांति है निःश्वास शांति
मुक्ति है महामुक्ति ?