शनिवार, 19 दिसंबर 2020

तु पलटिये जरूड़




च्ये्ली!

छ्योड़ी!!

कूंणईं-

बखत बदईणौ

तु धरिये आपंण धियान

भली भैं सराये खुट

झन भुलिये

तु छै छ्योड़ी ऽ

जुगन में ख्येड़ियै ऽ,

कतुकै, कस्सै

बदइ जौ बखत

तु रौली छ्योड़ी ऽ

छोड़ियै ऽ, ख्येड़ियै ऽ....


मेंई झुगुल पैरि

आज मैक्सी

भो ‘मिनी-मिडी’

तु जि लै पैरि

ला्गली बा्ट-

घर में,

घर में’ ई

ला्गि जा्ल गुण्ड

त्यार पछिल

बजाल सिट्टि

मारा्ल आंख

च्वेड़ा्ल ल्वा्त

लुछा्ल तुकैं

गा्व न अटकली

हुत्तै लै न्यैयि ल्या्ल

हौर....

जांणि कि-कि लै.....!


त्येरि दा्स दयेखि

उवाक्क-उपर ऐजनीं जनूंकै

अर जो सम्मेलनन में

लम्ब चौड़

भाषण दिन-दिन न था्कन

त्यार बिकासा्क उपर

उं लै, मौक ऊंण पारि

खाप तां्णा्ल

गिज उफराल

ज्यूंनि भर झुराल तुकैं।


य ह्वल,

बस त्यार पलटंण तलक

सार न है सको भलै आङ

तु करि ले मन सार,

और दे जवाब पलटि मेंर

मकैं पुर बिश्वास छु

तब, त्वे में देखियै्लि

उनूंकै झा्ंसिकि रांणि 

का्इ माता!

आ्ंख निमी जा्ल

खाप तांणियै रै जा्ल

गिज सुकि जा्ल उनार

पर,

त्यार खुटी सिलाम,

तु पलटिये जरूड़।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

कोरोना कें हरूंण छू



 ऐरौ दुनीं में कोरोना, भुती रौ दुनी में कोरोना

जागर लगाओ यै कैं भजूंण हुं

भजूंण पड़ल इकैं 

पर इकैं भजूंणक तरिक उस न है सकन

जसी द्याप्तन कैं जगूंनीं

उसी-जसी भूतन, छौवन कें भजूंनीं

किलकि यो छू रक्तबीज

जां-जां भिं में झड़नीं यैक रक्तबीज

ठा्ण है जांनी यै है लै सकर, 

बांकि, 

जांणि कतुकप रक्तबीज

यैक इलाज बस एकै छू

यै कैं भजूंणौक उपाय बस वी छू

जो बताई जै रौ दुर्गा सप्तशती में

जो पढ़ी जैं नौर्तन में

जसी मारौ माता दुर्गाल रक्तबीज कें

जसी न झड़ण दि रक्तबीजक ल्वे भिं में 

उसीकैं यैक रक्तबीज लै

न झड़ण दिंण पड़ाल आपंण पहाड़,

आपंण देवभूमि में।

यो छु मानवताक भष्मासुर

यकें आपूं कें ठौक लगूंण झन दिया

यैक ढीक झन जाया

जो लागि गेई काईं यैक संक्रमित में ठौक

जो न्है गयां कांई यैक ढीक

कर द्यल य भसम 

हमूंकैं ई नैं,

पुरि मानवता कैं।

पैली कांई घर है भ्यार जाया झन,

इथ-उथ हाथ टेकिया झन

खास बिरादरी, मितरामी में लै 

रया दूर-दूरै 

जरूरी इथ-उथ जांण पड़ौ

मूंख में लगाया मास्क, हातन में दस्तान,


फिर लै जो कांई टेकी गयो हात

हात ध्वे ल्हिया

खासकर आंख, नाक, कान में खाजि-खजै लगूंण

खांण खांण है पैली 

हाथ जरूरै ध्वे ल्हियां सापणैल

20 सेकेंड तलक साफ करिबेर

करते रया तीन है पांच मिनट लूंण-पाणिक गरार

पीते रया गरम पांणि, चहा

कि दूध में हल्द खिति बेर

बुड़-बुड़्यांक धरिया खास ध्यान 

न निकलंण दिया उनूंकैं घर है भ्यार

फिर लै जो ऐ जाओ तेज जर, 

सुकि खांसि, 

सांस ल्हिंण में असज

सिद्द फोन में 104 नंबर मिलाया, 

अस्पताल जाया

भ्यार बै आईनैकि जानकारी लै यै नंबर पारि दिया

और के करंणक जरवत न्हैं

याद धरो

हम वीरभूमिक वीर च्याल-च्येली छां

लाम में दुश्मणोंक दांत खट्ट करिणियोंक भै-बैंणी छां

आज छु मौक

घर में भैटि बेर

देश सेवा करणौक

तो संकल्प ल्हियो

करुंल हम करोनाक लै जड़मेट

घर बै भ्यार न निकलूंल

कै कैं ठौक नि लगूंल

घर में रूंल 

और कोरोना कैं हरूंल।




हिंदी अनुवाद: कोरोना को हराना है

आया है दुनिया में कोरोना, भूतों की तरह डरा रहा है1

जागर2 लगाओ इसे भगाने को

भगाना पड़ेगा इसे भगाने को

पर इसे भगाने का तरीका वैसा नहीं हो सकता

जैसे देवताओं को जागृत किया जाता है

बल्कि वैसे, जैसे भूतों-प्रेतात्माओं को भगाया जाता है 

क्योंकि यह है रक्तबीज3

जहां-जहां गिरते हैं इसके रक्तबीज यानी रक्तकण

खड़े हो जाते हैं उस से भी बड़े

अधिक,

जाने कितने ही रक्तबीज

इसका इलाज/समाधान बस एक ही है

इसे भगाने का उपाय बस वह ही है

जो बताया गया है दुर्गा सप्तशती में

जो पढ़ी जाती है नवरात्रों में

जैसा मारा माता दुर्गा ने रक्तबीज को

जैसे गिरने नहीं दिये रक्तबीज के रक्तकण जमीन में

वैसे ही इसके रक्त कण भी

नहीं गिरने/पड़ने देने पड़ेंगे अपने पहाड़

अपनी देवभूमि में।

यह है मानवता का भष्मासुर4

इसे खुद को छूने न देना

इसके करीब न जाना

कहीं छू जाए इसका संक्रमित तो

जो कहीं चले गए इसके करीब तो

कर देगा यह भष्म

हमें ही नहीं,

पूरी मानवता को।

पहले तो कहीं घर से बाहर ही न जाना,

यहां-वहां हाथों को न टेकना

खास रिश्तेदारी-मित्रों में भी

रहना दूर-दूर ही

जरूरी कार्य से यहां-वहां जाना ही पड़े तो

मुंह में लगाना मास्क, हाथों में दस्ताने,

फिर भी जो कहीं हाथ टिक जाए जो

हाथ धो लेना

खासकर आंख, नाक, कान में खुजली लगाने

खाना खाने से पहले

हाथ जरूर ही धो लेना साबुन से

20 सेकेंड तक साफ से

करते रहना तीन से पांच मिनट तक नमक-पानी के गरारे

पीते रहना गर्म पानी, चाय

या दूध में हल्दी डालकर

बड़े-बूढ़ों का रखना खास ध्यान

न निकलने देना उन्हें घर से बाहर

फिर भी जो आ जाए तेज ज्वर,

सूखी खांसी,

श्वांस लेने के दिक्कत

सीधे फोन में 104 नंबर मिलाना,

अस्पताल जाना,

बाहर से आये लोगों की जानकारी भी इस नंबर पर देना

और कुछ करने की जरूरत नहीं है

याद रखो

हम वीरभूमि के वीर बेटे-बेटियां हैं

सीमा पर दुश्मनों के दांत खट्टे करने वालों के भाई-बहन हैं

आज है मौका

घर में बैठ कर

देश सेवा करने का

तो संकल्प लें

मिटाएंगे हम कोरोना का नाम

करेंगे हम कोरोना का जड़ से खात्मा

घर से बाहर नहीं निकलेंगे

किसी को छुवेंगे नहीं

घर में रहेंगे

और कोरोना को हराएंगे।


 कुछ खास शब्दों के अर्थ:

1. ‘भुती रौ’ शब्द किसी प्रेतात्मा के लिए प्रयोग किया जाता है जो डराती रहती है। 

2. ‘जागर’ एक तरह का रात्रि में किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान होता है, जिसमें ‘जागरण’ कर देवताओं एवं भूतों, प्रेतात्माओं/हुतात्माओं, बुरी आत्माओं का अवतरण किया जाता है, ताकि भूत का प्रकोप/भय समाप्त हो।

3. ‘रक्तबीज’ भारतीय मिथकों, दुर्गा सप्तशती के अनुसार एक ऐसा राक्षस जिसके जितने रक्त कण जमीन में गिरते थे, उतने ही उसके ही जैसे राक्षस पैदा होकर माता से लड़ने लगते थे। 

4. ‘भष्मासुर’ भारतीय मिथकों के अनुसार एक ऐसा राक्षस जिसने भगवान शिव से ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था, कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखता-वह भष्म हो जाता था। आखिर में वह स्वयं भगवान शिव के सिर पर ही हाथ रखकर उन्हें भष्म करने निकल गया था। इस पर भगवान विष्णु ने चतुराई से उसका हाथ उसके ही सिर पर रखवाकर उसे भष्म करवाया था।


बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

कुछ काम अब तो कर लो बलम...



‘कुछ काम अब तो कर लो बलम,

बंद करा क्यूं ग्यूं चावल हमरा, गुझिया हुंणी चीनी दिला दो बलम,

खाली खजाना जेब भी खाली-करने वाले जेल चलें,

मुख पे मलो उनके कालो डीजल, भ्रष्टाचार की होरी जलें,

औरों पर तो बहुत चलाई, कुछ खुद पर भी तो चला दो कलम,

कुछ काम अब तो कर लो बलम’

नवीन जोशी, 'नवेंदु'

यह भी पढ़ें : सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत है कुमाउनी शास्त्रीय होली

रविवार, 13 जुलाई 2014

कुमाउनी का पहला फार्मेट में भी उपलब्ध कविता संग्रह-"उघड़ी आंखोंक स्वींण"

जैल थै, वील पै

Click the Link : जैल थै, वील पै

एक कुमाउनी नाटक- खास मेरे सहपाठी दोस्तो की लिये (Characters and Plot has been Changed)
http://navinjoshi.in/?attachment_id=2602

गुरुवार, 22 मई 2014

पहली कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी लोक भाषाओं की मासिक पत्रिका ‘कुमगढ़’ प्रकाशित

उत्तराखंड की पहली कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी सहित समस्त लोक भाषाओं की मासिक पत्रिका ‘कुमगढ़’ का पहला अंक प्रकाशित हो गया है।

पत्रिका की प्रति सुरक्षित करवाने, नियमित या आजीवन सदस्यता लेने एवं आगामी अंकों के लिए अपने मौलिक लेख, कविताएं आदि प्रेषित करने के लिए पताः
श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु’
संपादक-कुमगढ़ पत्रिका
हिमानी वाङमय पीठ, पश्चिमी खेड़ा, पोस्ट-काठगोदाम, जिला-नैनीताल, पिन-263126। मोबाइलः 9719247882। ईमेलः kumgarh@gmail.com ।

सदस्यता राशिः सदस्यता (संरक्षक): रुपए 5000
आजीवन सदस्यताः रुपए 1000
विशेष सहयोगः रुपए 500
वार्षिक सहयोगः रुपए 100
एक प्रतिः रुपए 20

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

कुमाउनीं के पहले पुस्तक के साथ P.D.F. फॉर्म में भी प्रकाशित कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ का विमोचन

मेरी कुमाउनी कविताओं का संग्रह: उघड़ी आंखोंक स्वींड़ (लिंक क्लिक कर के PDF फॉर्मेट में पढ़ सकते हैं। )

आपकी अनेकों Querries के उत्तर में बताना है कि पुस्तक की सहयोग राशि रूपए 250 है। इसे P.D.F. फोर्मेट में रूपए 150 में (S.B.I. नैनीताल के खाता संख्या 30972689284 में जमाकर) ई-मेल से भी मंगाया जा सकता है।

सुविधा के लिए पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है।

मेरी  चुनिन्दा कुमाउनी कवितायें मेरे ब्लॉग 'ऊंचे पहाड़ों से.… जीवन के स्वर' में भी देख सकते हैं।

बधाइयों, शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के लिए सभी मित्रों / अग्रजों का धन्यवाद, आभार,
संपर्क करें:
saharanavinjoshi@gmail.com
Mobile: 9412037779, 9675155117.

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

पनर अगस्ता्क दिन


आज छि छुट्टि
करौ मैंल ऐराम
स्येई रयूं दिनमान भरि
लगा टी.बी.-
क्वे पिक्चर न ऊंणैछी
बजा रेडू-
कैं फिल्मी गीत न ऊंणाछी
सब ठौर ऊंणाछी भाषण
द्यखंण पणीं-सुणंण पणीं
सुंण्यौ-भारत माताकि जैक ना्र
करीब सात म्हैंण पछां
पैल फ्यार
छब्बीस जनवरीक पछां ।
तिरंग फहरूंणाछी मंत्रिज्यू (?) राजधाणि में
खालि शान करंण बा्ट
ड्वार पारि ठौक लगूंणाछी
ख्वर नांगड़ !
कि पैरी धर्मनिरपेक्ष अलोप टोपि (पत्त नैं)
कैसिट में बा्जणौछी-राष्ट्रीय गीत
सब खाल्लि ठा्ड़ छी
तिरंगाक सामुणि
गिज बुजि,
खा्जि-खुजै...
मांछर उणूंण छुं
कि गरमैल
हात-खुट हल्कूंणाछी ।
फ़िरि ग्येई मंत्रिज्यू अलग-अलग जा्ग
भाषण द्येईं, झंड फहराईं
पैरि ए जा्ग राम टोपि
दुसरि जा्ग रहीम टोपि
तिसरि जा्ग टोपिक जा्ग टोप
फीरि  चौथ जा्ग पागड़ !
ब्याव हुं सब तिर
धरी द्येईं समाइ बेर
उ झंड, उं कैसिट
उं देशभक्तिक गीत,
ना्र, भाषण,
उं शहीदौंक क्वीड़
उं देशभक्तिक किस्स....
............सब तिर
और फिरि-
सब स्ये ग्ये्ईं-म्येरि’ई चार
द्वि अक्टूबर तलक ।

(स्व. नरसिम्हाराव ज्यूक प्रधानमन्त्रित्व काल में 'पनर अगस्ता्क दिन' लेखी कविता)

शनिवार, 24 अगस्त 2013

गाड़ ऐ रै...

ओ उच्च अगाश में भैटी ता्रो
मणीं मुंणि हुणि त चा्ओ !
बचै ल्हिओ म्या्र घर कैं
वां गाड़ ऐ रै।
हर तरफ बगणौ गरम पांणि
खून कूंछी-जकैं मैंस
मलि जिहाज में उड़ि
सरकार चुनावौ्क निसांण ल्यै रै।
मिं लै जै ऊंछी मणीं,
सुणि ऊंछी वीक हवाइ स्वींण
कि करूं म्यर नौं कै बेर
उ इतू टाड़ बै ऐ रै।
म्या्र गिजन हासिल न्हैं हंसि
चलो यौ के बात नि भै
यां तौ सबूकै लिजी
आंसनै्कि यैसि गाड़ ऐ रै।
म्या्र घर लै ऊंछी सौंण
झुलछी झुल भै-बैंणी
अफसोस आ्ब न लागा्ल
पैलियै यैसि डाड़ ऐ रै।
समेरि हा्ली मैंल लै
आपंण समान, छा्र और मा्ट
पर भा्जूं त कॉ भाजूं
मैंस कूनईं-भा्जो बाड़ ऐ रै।



शनिवार, 8 जून 2013

नईं जमा्न में...



अजब-गजब द्यखौ
(उत्तराखंड आंदोलना्क) उ जमा्न में
मैंस देखणांछी स्वींण
राज्या्क विकासा्क
गौं-गाड़न में द्यखौ-कर्फ्यू
घुघुतिकि घुर-घुर में सुणीं
बन्दूगौंकि गोइ
जां लागि रूंछी रोज
भा्इ-चारा्क म्या्व
वां ज्वानौंकि लाश द्ये्खीं
जां है रूंछी, हंसि-ठा्ठ-खुसि
वां इज-बाबुकि डाड़ पड़ी द्येखी
बजार में द्येखीं
धरना, जुलूस, हड़ताल
मरीनैकि जिन्दाबाद
ज्यूनौंकि मुर्दाबाद
ठो्सीणांछी मैंस-स्यैंणी
झेलून बड़ पैमा्न में,
अजब-गजब द्यखौ
उ जमा्न में ।
.................................
पहाड़ों में द्यखौ बड़ बिकास
गौं-गौं तक दये्खीं सड़क
रिटणाछी जीप, गाड़ि, मोटर-कार
घर-घर में द्यखौ टी.बी.
एक-एक टी.बी. में द्य्खौ
छै-छै डिसौंक कनैक्सन
पेट खा्लि हो भलै
गा्ड़ खड़ि हुं, खंणि बिचै ग्येईं भलै
डा्व बोट खोपि-काटि बेचि हालीं भलै
के रुजगार न्है भलै
घरक काम करंण में शरमै भै
नईं-नईं मिजात करणै भै
बिड़ि-सिगरेट-सुर पींणै भै
खांण हुं क्रीमरौल, बिश्कुट चैनेरै भै
ए दुसरैकि हौंसि में
हिन्दी-हिंग्लिश
कुमाउनी हिमाउंनी बंडण द्येखी
मैंस द्येखीं भैटी रात्ति-ब्याव
जुवा्क फड़न में
अजब-गजब द्यखौ
यौ नई जमा्न में ।

(मेरे इसी माह प्रकाशित हो रहे कुमाउनी कविता संग्रह 'उघडी आँखोंक स्वींण' से...)

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

उत्तराखंड निकाय चुनावों पारि कुमाउनी कविता: फरक पडूं



सागा्क फड़ पारि
वीलि आपंण पुर अनुभव
गणित, भूगोल, हिसाब-किताब
सामान्य ज्ञान
हुत्तै अड़ोइ हा्लौ
पुर डिमाग खर्चि हा्लौ
पांच रुपै है चार-आठ आ्न
कम-बांकि खर्चणा लिजी
एक किलू आ्लूक ग्याड़ों लिजी
जो इक्कै दिन में लै निमड़ि सकनीं
पर, वीकि स्यैंणि उनूकें
पुर पांच दिनोंक तै पुरयालि
पांच फड़ टटो्इ हा्लीं...

सोचि हा्लौ-
कि, कसी, कतू....
उमाइ, थे्चि
खुस्याल छ्वेलि
कि सिखुस्यालै का्टि
कि-कि मस्या्ल खिति
के् दिगाड़ मिस्यै
कि सुद्दै गुटुक
कि............
पचास परगारा्क
आ्लू सागा्क सवाद
सागा्क फड़ पारि
ठड़ी-ठड़ियै
चा्खि हा्लीं
पर के फैसा्ल न करि सकनय।

भो छन भोट,
आज-भो रोजै भोट
बजार बन्द रौलि
आ्ल लै न बिचाल
फिर लै बिन आ्लू कै -रित्तै
ऐगो घर हुं उ
हा्य, इतू अकर सोचनै
आलु है सकर आलुक सोरों कैं बोकि।

घर सागैकि खुरि-तुरि करि भैटी
स्यैंणि नड़क्यूनै-
एक किलू आ्ल लूंण में
इतू विचार?
भो कसी द्यला भोट?
ककैं द्यला? कसी करला फैसा्ल?
कूणौ-
वीकि कि चिंत?
कै कैं लै दि द्यूंल
कि फरक पडूं ।

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कां है रै दौड़



कां है रै दौड़
भलि छै कुशल बात, ना्न-तिन
अयांण-सयांण, धिनाई-पांणि
घर-दौंड़, भितर-भ्यार
बंण-जङव, हा्व-पांणि
ढोर-डंगर, फसल-पा्ति
बुति-धांणि......
आ्ब कि पुछछा
ककैं छु पत्त
बस है रै दौड़
कां हुं ? न्है पत्त ।

सब भा्जणईं-पड़ि रै भजा-भाज
निकइ रौ गाज
करंण में छन सिंटो्इ सिंगार
अगी रौ भितर-भ्यार।

क्वे आपूं ज कै कैं न चितूंणया
क्वे मैंस कैं क्वे मैंस न मिलणंय
क्वे ज्यून कैं क्वे ज्यून न मिलणंय
क्वे सच्च कैं क्वे सच्च न मिलणंय
क्वे हिंदुस्तानि कैं क्वे हिंदुस्तानि न मिलणंय
क्वे पहाड़ि कैं क्वे पहाड़ि न मिलणंय....

फिर उं सयांण कूंणी आपूं कैं (?)
छा्र फो्कि
ढुनणईं मुक्ति-शांति....
जां न ज्यूनि छु
न मैंस...न सच्चाइ...न मौतै ऽ
जां जि छु, कि न्है
को् कै सकूं पुर भरोषैल
कि मिलौ्ल वां
छा्र, सिफर अलावा और के ?

पर छा्र सिफर है लै ठुलि
न ह्वैलि‘ई क्वे दौड़
संतोष है महासंतोष
शांति है निःश्वास शांति
मुक्ति है महामुक्ति ?

शनिवार, 24 नवंबर 2012

आम आदिम-आम आदमी


मिं ए आम आदिम
यै है बांकि 
के नैं।
मिं के लै नैं।

म्या्र स्वींड़ के नैं
म्या्र क्वीड़ के नैं
म्येरि पीड़ के नैं
पर म्येरि घींण करनी सब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्या्र गीत के नैं
म्यार रीत के नैं
म्येरि प्रीति के नैं
म्येरि जीत न हुनि कब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्येरि डाड़ के नैं
म्यर लाड़ के नैं
म्या्र हाड़ के नैं
मिं हूं खाड़ खंड़नी सब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्येरि अकल के नैं
म्येरि शकल के नैं
म्यर बल के नैं
म्यर जस पगल नि मिलल कब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्यर नौं है सकूं के लै
म्यर गौं है सकूं क्वे लै
सकींण लागि गे मेरि लौ लै
बंणि गे ए ’घौ’ म्येरि ज्यूनि हुत्तै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

क्वे कै दियो वी ’हाथ’ म्या्र दिगाड़ि
क्वे थमै दियो म्या्र हात में ’फूल’
क्वे बंणै दियो म्येरि नौं कि’ई पार्टी
उनूं छोड़ि, होली म्येरि भलिआम कब्बै ?
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

हिंदी भावानुवाद

मैं एक आम आदमी
इससे अधिक 
कुछ नहीं
मैं कुछ भी नहीं।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरे सपने कुछ नहीं
मेरी बातें कुछ नहीं
मेरे दर्द कुछ नहीं
लेकिन मुझसे घृणा करते हैं सभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरे गीत कुछ नहीं
मेरे तौर-तरीके कुछ नहीं
मेरा प्यार कुछ नहीं
मेरी जीत नहीं होती कभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरा रोना कुछ नहीं
मेरा दुलार कुछ नहीं
मेरी हड्डियां (हो चुकीं तो) कुछ नहीं
मेरे लिये गड्ढे ही खोदते हैं सभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरी अक्ल कुछ नहीं
मेरी शक्ल कुछ नहीं
मुझमें बल कुछ नहीं
मुझ सा पागल नहीं मिलेगा कहीं।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरा नाम हो सकता है कुछ भी
मेरा गांव हो सकता है कहीं भी
खत्म होने लगी है मेरी आत्मिक शक्ति भी
एक घाव बन गई है मेरी पूरी जिंदगी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

कोई कह दे उसका ’हाथ’ मेरे साथ
कोई पकड़ा दे मेरे हाथ में ’फूल’
कोई बना दे मेरे नाम से ही पार्टी
उनके बजाय क्या हो सकता है मेरा भला कभी ?
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

सोमवार, 12 मार्च 2012

होलि पारि रंङोंकि कविता: पर्या रंङ


रंङिलि दुनिया्क लै रंङै-रंङ
एक रंङ लाल-हर तरफ
खुन्यौवौ्क
एक रंङ का्व-हर तरफ
कच्यारौ्क
एक रंङ पिङव-मैसोंक 
मुखोंक
कै पारि चणणौं कैकै रंङ
कै पारि कैकै
कै पारि लक्ष्मीक
कै पारि “शक्तिक
पर कमै लोगूं पारि सरस्वतीक
सब रंङ चढ़नई 
एका्क मा्थ में एक
द्वि-द्वि, तीन-तीन
हजार-हजार लै
स्यत-हरी-केसरिया लै 
पत्त नैं किलै
मिलि-मेस्यै 
सब हरै जांणईं का्व रंङ में।

सब बदवणईं आपंण रंङ
फूल लै, 
का्स-का्स रंङ
क्या्प-क्या्प रंङ
बेई तलक रूंछी जो झाड़ा्क झुपा्ड़न में 
कमेट लै नि छी उछिटणा्क लिजी
कमेट बेचि, पोतणईं पेन्ट
लुकुड़ों में छन् टा्ल, असल रंङ
मकान में, मूंख में-किरीम पौडर
इज-बा्ब में-मौम, डैडौ्क रंङ
दुदबोलि-भा्ष में लै रंङ
चांओ-दाव में लै रंङ
देश-भेष में लै रंङ-पर्या रंङ।
बदवंण में छन सब आपंण असल रंङ
न द्यखींण चैन कैं बै लै
अनार, असल लच्छंण, चिनांण।

एक लड़ैं लड़छी गांधी-मंडेलाल
ग्वारों थें-का्व रंङैकि
आपंण और पर्या रंङैकि
पर आ्ब न्है दाव में का्व
काई हैगे पुरि काया, ह्यि लै
कतुकै स्या्त है बेर 
भैम फैलै लियों उं नेता
क्वे रंङ न चड़ि सकन उना्र 
का्व मना्क थिका्वों में। 

बुधवार, 9 नवंबर 2011

खबरदार !

खबरदार ! हुशियार ! 
आ्ब और नैं ! 
मिं आ्ब सुणंण लागि गो्यूं 
म्या्र कानोंक ढा्क
तुमैरि गोइनैकि अवाजै्ल
फा्ट नैं
खुलि ग्येईं।

म्यार हात
हतकड़ि खिति 
तुम बा्दि न सका ऽ
यं और लै फराङ है ग्येईं
फैलि ग्येईं।

तुमा्र अन्यौ-अत्याचारैल
मिं डरि गोयूं
य लै झन समझिया
म्या्र आंखों पारि ला्गी
सब तिर सै ल्हिणांक 
बणुवा्क जा्व
फाटि ग्येईं।

सावधान !
अघिल ऊंण है पैली 
सोचि ल्हिओ ए यार आ्जि
तुमा्र गुई जिबा्ड़ में छो्पी
तिमुरी का्न
पछ्याणि हा्लीं मैंल।
मिं राघव, मिं रहीम, मिं गुरुमुख
आ्ब खालि 
चाइयै न रूंल
चुप लै न रूंल।

हुशियार! 
फिरि कैं, क्वे द्रोपदी पा्रि
कुआं्ख झन धरिया !
मिं अर्जुन-मिं धनुष धारि
ऐ जूंल मुकाबल में।

खबरदार !
अहिंसा कैं सितिल-पितिल
कमजोर मानि
जा्ंठ न मारिया कै कैं आ्ब
मिं गांधि
फिरि ऐ जूंल
जां्ठ थामि।

और खबरदार!
मकैं सिदसा्द, घ्यामण समझि
म्येरि संस्कृति 
म्येरि धर्ति कैं 
लुटणैकि चोरमार झन करिया
मिं भोले ‘शंकर
उघड़ि सकूं म्यर तिसर आं्ख
है जा्ल तुमर नौंमेट।

रुको!
फिरि सोचि ल्हिओ
कि है सकूं-कि करि बेर
और नसि आ्ओ तलि
उ हाङ बै
जमैं भैटि का्टि हालौ तुमुल आफी
आपंण कुकर्मनौंल।

टोड़ि ल्हिओ उ ज्यौड़
बा्दी रौछा जैल
गरम लाल कुर्सि दगै
अतर! भड़ी जाला तुम
आपड़ै बा्दी हतकड़िल।

ख्येड़ि दिओ
उं सुन चांदिक लुकुड़
और पैरि ल्हिओ-वी पुरां्ण
कुथावै सई,
नतर! नङा्ण है जला
उं सतियौंकि राफैल।

ख्येड़ि दिओ
आपंण हा्तौंक जां्ठ
अतर! तुमरै बा्दी
पलटि लै सकनीं
तुमारै उज्यांणि
सीङ तांणि।

और य लै समझि ल्हिओ
तुमौर ठुल है जां्ण
ब्याखुलिक स्योव जस छु
तुम और ठुल है सकछा जरूण
मंणि देर आ्जि
पर तुमर अंत ऐ पुजि गो
तुमर सूर्ज डुबणौ
खबरदार !

हिंदी भावानुवाद

खबरदार! 
सावधान! होशियार! 
अब और नहीं!
मैं अब सुनने लग गया हूं।
मेरे कानों के दरवाजे
तुम्हारी गोलियों की आवाजों से
फटे नहंी
और खुल गये हैं।

मेरे हाथ
हथकड़ियां डाल
तुम बांध नहीं सके
ये और भी
चौड़े हो गये हैं
फैल गये हैं।

तुम्हारे अन्याय-अत्याचार से
मैं डर गया
यह भी न समझना
मेरी आंखों पर लगे
सब कुछ सह लेने के
मकड़ियों जैसे जाल
फट गये हैं।

सावधान!
आगे आने से पहले
सोच लो एक बार और
तुम्हारी मीठी जीभ में छिपे
तिमूर जैसे कांटे 
पहचान लिये हैं मैंने।
मैं राघव, मैं रहीम, मैं गुरुमुख
अब यूं ही
देखता न रहूंगा
चुप भी न रहूंगा।

होशियार।
फिर कहीं, किसी द्रोपदी पर
कुदृष्टि न डालना!
मैं अर्जुन-मैं धनुर्धर
आ जाऊंगा मुकाबले मैं।

खबरदार! 
अहिंसा को कमजोर मान
लाठियां न भांजना फिर
मैं गांधी
फिर आ जाऊंगा लाठी थाम।

खबरदार! 
मुझे सीधा-सादा, भोला समझ
मेरी संस्कृति
मेरी धरती को
छल से लूटने की कोशिश न करना।
मैं भोले ‘शंकर
खुल सकती है मेरी तीसरी आंख
मिट जाऐगा तुम्हारा नाम।

रुको!
फिर सोच लो
क्या हो सकता है-क्या करके
और उतर आओ नींचे
उस टहनी से 
जिसमें बैठकर स्वयं काट डाला है तुमने
अपने कुकर्मों से।

तोड़ लो वह रस्सियां
बंधे हो जिनसे
गर्म लाल कुर्सियों से
अन्यथा! जल जाओगे तुम
खुद ही बांधी हथकड़ियों से।

फेंक दो
वे सोने-चांदी के वस्त्र
और पहन लो-वही पुराने
मोटे वस्त्र
वरना! नग्न हो जाओगे
उन सतियों के तेज से।

फेंक दो
टपनी हाथों से लाठियां
अन्यथा! तुम्हारे द्वारा बांधे गऐ (जानवर)
पलट भी सकते हैं 
तुम्हारी ही ओर
सींगें तानकर।

और यह भी समझ लो
तुम्हारा बढ़ा (लंबा) हो जाना
शाम की छाया जैसा है।
तुम और लंबे हो सकते हो अभी जरूर
पर तुम्हारा अंत आ पहुंचा है
सूर्य डूब रहा है (तुम्हारा)
खबरदार।


(उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर विशेष: यह कविता राज्य आन्दोलन के दौरान खटीमा-मसूरी व मुजफ्फरनगर कांडों के बाद लिखी गयी थी)